Monday, March 21, 2022

कश्मीर द फाइल्स फिल्म का प्रचार प्रसार नफरत फैलाने का तरीका या फिर भाजपा 2024 की तैयारी में जुटी

कोतमा- आमीन वारसी- ये मै नही हालात कुछ तरह का इशारा कर रहें है क्योंकि इससे पहले कभी फिल्म रीलिज़ होने पर सरकारें टैक्स फ्री खूब प्रचार प्रसार वगैरह वगैरह नही करती थी लेकिन कश्मीर द फाइल्स देखने लिए प्रधानमंत्री जी भारतीय जनता पार्टी संगठन की ओर से देशवासियों को जोर दिया जा रहा मतलब साफ है कि मोदी सरकार की 2024 की तैयारी शुरू हो चुकी है! अगर ये सच नही है तो प्रधानमंत्री जी भारतीय जनता पार्टी व संगठन से आग्रह है कि हरियाणा जाट आरक्षण आदोंलन पर बनी फिल्म चीरहरण आदिवासियों पर हो रहें अत्याचार पर बनी फिल्म चक्रव्यूह व शुद्र द राइजिंग भी देश के सभी थियेटर संचालकों को आदेशित करें कि सभी थियेटर संचालक हरियाणा जाट आरक्षण आदोंलन फिल्म चीरहरण एवं आदिवासियों पर बनी फिल्म चक्रव्यूह शुद्र द राइजिंग अपने थियेटर में दिखाएं साथ ही प्रधानमंत्री जी मन की बात की तरह टीवी चैनलों में लाइव आकर सभी देशवासियों से अपील करें कि सभी समय निकालकर देशहित में फिल्म चीरहरण चक्रव्यूह शुद्र द राइजिंग अवश्य देखें! लेकिन प्रधानमंत्री जी भारतीय जनता पार्टी व संगठन ऐसा हरगिज़ नही करेंगे  क्योंकि प्रधानमंत्री जी सहित भारतीय जनता पार्टी संगठन के तमाम लोग यह भलि भातिं जानते है कि जिस दिन भारत देश की आम जनता कश्मीर द फाइल्स की तरह फिल्म चीरहरण चक्रव्यूह शुद्र द राइजिंग देख लेगी तो समझ लीजिए उस दिन से राजनेताओं का बोरिया बिस्तर बधना तय है! 

जरा अक्टूबर 2021 पर भी रौशनी डालिए मोदी जी- 

वर्ष 1990 में कश्मीरी पंडित कश्मीरी हिंदुओं के साथ जो अत्याचार हुआ है वो यकीनन कभी भी भुलाया नही जा सकता लेकिन एक सवाल यह भी है कि 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ जुल्म हो रहा था तो केन्द्र एवं राज्य की सरकारें व उनकी पुलिस उनकी मिलेट्री क्या कर रही थी! फिल्म कश्मीर द फाइल्स देखने वाले दर्शकों को यह समझना बहोत ही जरुरी है कि एक ओर अलगाववादी संगठन आतंकी कश्मीर में जुल्म पर जुल्म कर रहे थें दूसरी ओर पीड़ित जुल्म पर जुल्म सह रहे थें आखिर उस वक्त की सरकारें कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होता देख चुप क्यों थी! और पिछले साल 2021 अक्टूबर माह में भी हजारों हजार कश्मीरी हिंदुओं ने पलायन किया था तब भी केन्द्र की मोदी सरकार चुप थी वो इसलिए कि केन्द्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से हिन्दूओं के पलायन की समस्या से ज्यादा जरूरी यूपी चुनाव सहित पाच राज्य का चुनाव जरुरी समझा! जबकि हम सभी देशवासियों ने न्यूज़ चैनलों शोसल मीडिया के माध्यम से यह जाना था कि पिछले साल अक्टूबर माह में 1990 के बाद एक बार फिर से कश्मीरी पंडित कश्मीरी हिंदुओं पर जुल्म हुआ जिससे पुनः पलायन करने पर मजबूर हुए थें! और हमारे देश के प्रधानमंत्री ग्रहमंत्री रक्षामंत्री सहित भारतीय जनता पार्टी के लोग चुनाव जीतने का गुणा गणित लगा रहें थें! इस तरह 1990 की तर्ज़ पर 2021 फिल्म कश्मीर द फाइल्स (2) भी बननी चाहिए और फिल्म कश्मीर द फाइल्स (2) को भी देशवासी देखें तभी तो मोदी सरकार की नाकामियों का पता लगेगा! 

देश वासियों को यह जानना बहोत ही जरुरी है कि सरकारों कि हिटलर शाही और नाकामियों की वजह से किसानों की जमीनों पर आंच आई तो 13 महीने तक सब कुछ त्यागकर दिल्ली के बॉर्डर पर पड़े रहे।
कश्मीर घाटी में आज भी जाट-गुर्जर खेती कर रहे है। 1967 के बाद से देश के बारह राज्यों में आदिवासियों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है और कारण इतना ही बताया जाता है कि विकास के रास्ते में रोड़ा बनने वाले नक्सली लोगों को निपटाया जा रहा है!
आदिवासियों का नरसंहार कभी चर्चा का विषय नहीं बनता है।उनके विस्थापन का दर्द,पुनर्वास की योजनाओं पर कोई विमर्श नहीं होता।
सुविधा के लिए बता दूँ कि 1989 तक कश्मीरी पंडित बहुत खुश थे और हर क्षेत्र में महाजन बने हुए थे।
अचानक दिल्ली में बीजेपी समर्थित सरकार आती है और राज्य सरकार को बर्खास्त करके जगमोहन को राज्यपाल बना दिया जाता है। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म हुए और दिल्ली की तरफ प्रस्थान किया गया!
उसके बाद बीजेपी ने कश्मीरी पंडितों का मुद्दा मुसलमानों को विलेन साबित करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दा बना लिया!
कांग्रेस सरकार ने जमकर इस मुद्दे को निपटाने के लिए सालाना खरबों के पैकेज दिए और जितने भी कश्मीरी पंडित पलायन करके आये उनको एलीट क्लास में स्थापित कर दिया।
साल में एक बार जंतर-मंतर पर आते,बीजेपी के सहयोग से ब्लैकमेल करते और हफ्ता वसूली लेकर निकल लेते थे।

8 साल से केंद्र में बीजेपी की प्रचंड बहुमत की सरकार है और कश्मीर से धारा 370 भी हटा चुके है लेकिन कश्मीरी पंडित वापिस कश्मीर में स्थापित नहीं हो पा रहे है!
धरने-प्रदर्शन से निकलकर हफ्तावसूली की गैंग फिल्में बनाकर पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करके वसूली का नया तरीका ईजाद कर चुकी है!आदिवासी रोज अपनी विरासत को बचाने के लिए चूहों की तरह मारे जा रहे है लेकिन कभी संज्ञान नहीं लिया जाता।आज किसान कौमों को विभिन्न तरीकों से मारा जा रहा है लेकिन कोई चर्चा नहीं होती।

1995 के बाद से आज तक तकरीबन 15 लाख किसान व्यवस्था की दरिंदगी से तंग आकर आत्महत्या कर चुके है लेकिन पिछले 25 सालों में एक भी बार जंतर-मंतर पर कोई धरना नहीं हुआ,राष्ट्रीय मीडिया में विमर्श का विषय नहीं बना और केंद्र सरकार की तरफ से चवन्नी भी राहत पैकेज के रूप में नहीं मिली।
भागलपुर,पूर्णिया,गोदरा के दंगों से भी पलायन हुआ एवं देश के सैंकड़ों नागरिक मारे गए।मुजफरनगर नगर फाइल्स या हरियाणा जाट आरक्षण पर हरियाणा फाइल्स भी बननी चाहिए!हर नागरिक की मौत का संज्ञान लिया जाना चाहिए।एक नागरिक की जान अडानी-अंबानी की संपदा से 100 गुणा कीमती है।हफ्ता-वसूली की यह मंडी अब खत्म होनी चाहिए।आखिर अत्याचारों का धंधा कब तक चलाया जाएगा! तथाकथित राष्ट्रवादियों से निवेदन है कि एक बार हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन पर बनी फिल्म चीरहरण को देख लीजिए या आदिवासियों पर बनी फिल्म चक्रव्यूह व शुद्र द राइजिंग देख लीजिए अगर कलेजा न फटने लगे तो कहना!

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