Thursday, September 2, 2021

बहुचर्चित ईशू हत्या कांड की जांच पुनः शुरू हो सकती है

 कोतमा- आमीन वारसी- नवागत पुलिस अधीक्षक अखिल पटेल के अनूपपुर जिले में पदस्थ होने से आम-जन व पीड़ित परिवारों के जीवन में उम्मीद की एक नई किरण जागी है कि आमजनों को पुलिस अधीक्षक अखिल पटेल निश्चित ही न्याय दिलाएंगे इसलिए एक के  बाद एक पीड़ित अपनी पीड़ा लेकर पुलिस कप्तान के पास जा रहें। पुलिस अधीक्षक भी पीड़ितों को न्याय दिलाएं जानें की बात कह रहे हैं।इसी क्रम में कोतमा नगर वासियों ने बहुचर्चित ईशू हत्या कांड की जांच पुनः शुरू करने की मांग कर रहे हैं।     

यह है मामला- 
दिनांक १० जुलाई २०१३ को नगर के चर्चित व ख्यातिप्राप्त युवा व्यापारी आशुतोष अग्रवाल उर्फ ईशु की हत्या का जिसने पूरे नगर को दु:ख की लहर में डुबा दिया था। मामले के अनुसार नगर के व्यापारी ईशु अपनी एक मोबाइल दुकान नगर से पूर्व दिशा की ओर ३० किमी के फासले पर मनेन्द्रगढ़ में में संचालित करता था और रोज उसका कोतमा से मनेन्द्रगढ़ और मनेन्द्रगढ़ से कोतमा आना जाना था। दिनांक १० जुलाई को वह युवा व्यक्ति मनेन्द्रगढ़ से दुकान बन्द करके अपने घर वापस आ रहा था तभी कोतमा से महज १० किमी दूर केवई बेरियल के पुल पर उसे किसी ने गोली मारी और ऐसे नादारत हुआ कि आज तक न दिखा। मैं सीधा यह तो नहीं कहता कि उसे भागने में पुलिस ने सहायता की मगर इस मामले में कोतमा पुलिस व आला अफसरान की कायर्वाही कछुए की चाल चलती रही। व्यापारी ईशु अग्रवाल का कत्ल लगभग साढ़े दस बजे रात में होता है और ठीक १५ मिनट बाद एक पुलिस कर्मी वहाँ से गुजरते वक्त मामले को देखकर हत्या की सूचना न तो कोतमा थाने को देता है,न बिजुरी थाना को देता है उस अक्लमंद ने मामले की सूचना सीधे उच्चाधिकारियों को दी। पुलिस को लाश पड़े होने के सूचना देने वाले इस पुलिस कर्मी जिसका नाम चर्चाओं में बीआर सिंह सुना गया,था हत्या के ठीक बाद उसका तबादला कर दिया गया। सीधा कहें तो पहली सवालिया सुई यहीं टिकती है। कोतमा के इस नव धनाड्य ईशू अग्रवाल के दास्तों की मानें तो इसका कोई ज्यादती दुश्मन भी नहीं था और न हीं व्यापार की दुनिया में कोई खतरनाक आदमी इनसे प्रतिस्पर्धा में था।वहीं ऐसा कहना भी लाजिमी है कि जब दुश्मन देवी-देवताओं के हुए थे तो हम इंसान हैं। हो सकता है किसी को ईशू के जिन्दा रहने से किसी बात को लेकर चिढ़ता रहा हो, तो क्यों ईशू को गोली मारी गई, उसका जिन्दा रहना किसे पसन्द नहीं था।ईशू अग्रवाल हत्याकांड में जाँच जिस प्रकार से की गई पूरी तरह से पुलिस दबाव में थी या फिर पुलिस ने ईमानदारी से काम  नहीं किया।किसी जमाने में कहा जाता था कि अपराधी  पुलिस से पानी बुड़ा नहीं बचता तो फिर इस मामले में पुलिस के द्वारा कैसे कोई भी सफलता पाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया।अभी भी सवाल है। इस घटना के समय में पदस्थ थाना प्रभारी हों, या पुलिस अधीक्षक हों कोई भी लगन व ईमानदारी से काम नहीं करना चाहते थे और एक निश्चित  सरकारी प्रक्रिया के तहत अपना अपना तबादला होने के बाद अपने रोजी रोटी के तलाश में कहीं और निकल लिए। 
         
पूरे हत्याकांड मामले में पुलिस के द्वारा कोई भी रूचि नहीं ली गई और मामले को लीप-पोत कर बराबर कर दिया गया। इस घटना की मैं क्या बात करूँ? और भी कई मामले हैं जिनमें जघन्य हत्या का प्रयास कर हत्यारे सफल हुए और कत्ल पर कत्ल के मामले सिर्फ समाचार पत्रों में छपकर पुराने हो गए।हत्यारे फरार हैं, खुली हवा में चैन की साँस ले रहे हैं, आजादी के साथ भारतीय संविधान की खिल्ली उड़ा रहे हैं और जनता डरी हुई है वही जनता जिसकी रक्षा के लिए पुलिस को जनता से ही कमाकर सरकार लाखों रूपए महीने देती है। कोतमा राजनीति के क्षेत्र में जितना घटिया व बदनाम जगह है उतना ही अपराधों में भी अव्वल है।   
यह कहने में कोई हर्ज़ नहीं कि पुलिस ने हत्यारों को बेनकाब करने में भरपूर लापरवाही बरती है शायद इसीलिए आज भी ईशू का हत्यारा खुलेआम घूम रहा।आखिर ईशू अग्रवाल की हत्या किसने की,कहीं यह कोई सुपारी हत्या तो नहीं, उस पुलिसवाले ने सीधे ऊपर क्यों सूचना दी, इस मामले में किस-किस से क्या पूछताछ की गई, जब ईशु को गोली मारी गई तो क्यों किसी ने नहीं सुना जबकि घटना स्थल से पश्चिम दिशा में सिर्फ २०० मीटर चलने के बाद कई दुकानें व रहाईशी मकान हैं।क्या ईशू अग्रवाल की किसी से पुरानी दुश्मनी थी आपसी द्वेष था जिसे लोग न जानते रहे हों, इन सभी सवालों के साथ ही ईशू हत्याकांड दब गया है और फाइल कोतमा पुलिस के दफ्तर में अंतिम साँसे ले रही है जिसमें अब तक हजारों छिपकली व काकरोचों के अंडे होंगे। वहीं लोगों की समझ में न आने वाला एक सवाल यह है कि गरीबी की मार सहने वाला ईशू अग्रवाल अचानक दौलतमंद हो चला तो उसके दुश्मन कैसे नहीं हो सकते थे, क्या कोई नगर का दुश्मन था या नात रिश्तेदार थें या फिर मनेन्द्रगढ़ का कोई अपना गद़दार था,सब कुछ रहस्य ही है।अगर नवागत पुलिस अधीक्षक  इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बहुचर्चित ईशू हत्या कांड की जांच पुनः शुरू करा दे तो निश्चित ही ईशू हत्या कांड का खुलासा हो सकता है।

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