Tuesday, December 4, 2018

सटोरिया काट रहे चांदी,राजनैतिक दलो की नींद हराम



कोतमा/आमीन वारसी- चुनाव संपन्न होने के बाद अब जीत हार को लेकर सभी प्रत्याशी मंत्रणा करने में जुटे हैं। वही सटोरिया चांदी काट रहे है कोई एक का दस दे रहा तो कोई एक का तीन दे रहा है कुल मिलाकर प्रत्याशी की जीत-हार पर जमकर सटटा लग रहा है वही बढे वोटिंग प्रतिशत से  राजनैतिक दलो की नींद हराम होती दिखाई पड रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में दस मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा था। जबकि भाजपा ने भारी मतों से जीत हासिल की थी। इस बार फिर चुनावी फिजा विधायक मंत्रियों के खिलाफ है। निर्दलीय और बागियों समेत जनता की नाराजगी इन विधायक मंत्रियों पर भारी पड़ रही है। नतीजे भले ही 11 दिसंबर को आएं लेकिन उससे पहले कुछ हद तक बंपर वोटिंग प्रतिशत ने विधायक मंत्रियों की नींद हराम कर दी है। इस डर का असर प्रचार के दौरान भी देखने को मिला। पार्टी का निर्देश था कि मंत्री अपने क्षेत्र के अलावा पड़ोसी जिले में भी पार्टी के लिए प्रचार करें। लेकिन सीएम शिवराज सिंह चौहान के अलावा कोई भी अपना क्षेत्र छोड़ता नहीं दिखा। विधानसभा चुनाव की वोटिंग हो चुकी है और 11 दिसंबर को परिणाम घोषित किये जाएंगे। 2013 के मुकाबले 2018 में ज्यादा वोटिंग हुई है। इस बार 75 फीसदी वोटिंग हुई है। हालांकि इस बार का चुनाव 2013 के मुकाबले काफी अलग था। मध्यप्रदेश में ऐसा साइलेंट चुनाव पहली बार देखा गया है। इस बार चुनाव में मुद्दे कौन से थे लोगों की जुबान में चढ़े ही नहीं। चुनावी मौसम में ऐसा कोई स्लोगन (नारा) नहीं था जिसे याद किया जा सके। 2014 के लोकसभा चुनाव में लोगों की जुबान पर चढ़ गए थे नारेः 2014 के लोकसभा चुनाव में दिए गए नारों को आज भी याद किया जाता है। नरेन्द्र मोदी को एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने के बाद देश में नारों की बाढ़ सी आ गई थी। ’हर-हर मोदी घर-घर मोदी।’ ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ’अच्छे दिन आने वाले हैं। ये नारे बच्चों से लेकर बुजुर्गों की जुबान पर चढ़कर बोल रहे थे। वहीं, 2018 के विधानसभा चुनाव में कोई भी ऐसा नारा नहीं था जिसे याद किया जाए। वहीं, 2013 के विधानसभा में भाजपा की तऱफ से नारा दिया गया था ‘अबकी बार, शिवराज सरकार’ जो लोगों की जुबान पर थे पर इस बार के चुनाव में ऐसा कोई नारा नहीं सुनाई दिया। इस बार कांग्रेस की तरफ से ’वक्त है वदलाव’ का तो भाजपा की तरफ से ’समृद्ध मध्यप्रदेश’ और ’अबकी बार २०० पार’ का नारा दिया गया लेकिन दोनों ही दलों के नारे जनता की जुबान पर चढ़कर नहीं बोले। जिस नारे पर थोड़ी बहुत चर्चा हुई वो था, ’माफ करो महाराज हमारा नेता तो शिवराज।

खामोश रही जनता- इस बार के विधानसभा चुनाव में यह खास बात थी कि जनता की खामोशी, जनता को लुभाने के लिए इस बार सभा राजनीतिक दलों के दिग्गजों ने अपनी ताकत झोंक दी। बड़े नेताओं ने रोड शो किया, रैलियां भी कीं, जमकर भाषण भी दिए लेकिन उनकों सुनने वालों में ज्यादातार खाली कुर्सिया और पार्टी के कार्यकर्ता थे जनता तो ख़ामोश तमाशबीन बनकर सारा नजारा दूर से ही देखती रही। जो वोटर रैलियों की भीड़ में तब्दील होने से बचता रहा वहीं वोटर पोलिंग बूथ पर टूट पड़ा। वोटर मतदान केन्द्रों पर इस तरह से टूटा की स्थापना के बाद से अभी तक यानी मध्यप्रदेश के 61 साल के सारे रिकॉर्ड टूट गए और प्रदेश में पहली बार 74.85 फीसदी की रिकॉर्ड वोटिंग हुई।

मोदी लहर में भी नहींहुई थीइतनी वोटिंग- मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार कोई लहर नहीं थी जबकि इससे पहले के चुनाव में मोदी लहर थी। मोदी लहर में वोटिंग प्रतिशत पर करीब दो फीसदी की वृद्धि हुई थी। पर इस बार बिना किसी लहर के रिकार्ड मतदान हुआ। महिलाओं का मतदान 3.75 फीसदी बढ़ा तो कई ग्रामीण इलाकों में 80 फीसदी तक वोटिंग हुई। मध्यप्रदेश में मोदी लहर में 2 फीसदी वोटिंग बढ़ी थी।

सोशल मीडियाका भरपूरउपयोग- 2013 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले में 2018 के विधानसभा चुनाव में सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग हुआ। बड़े नेताओं के साथ-साथ प्रत्याशियों ने भी जमकर सोशल मीडिया में अपना प्रचार किया वहीं सोशल मीडिया में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के नेताओं के वीडियो भी वायरल हुए। हर नेता ने अपने कार्यक्रम और चुनावी रैलियों को जानकारी लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से दी। सोशल मीडिया में फिल्मों के फनी सीनों को एडिट कर नेताओं का चेहरा लगाकर वायरल किया गया तो। आरोप और प्रत्यारोप के लिए सबसे सशक्त माध्यम इस बार सोशल मीडिया ही था।

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