कोतमा/आमीन वारसी- प्रदेश सहित चारों राज्य में चुनाव हुए जिसका परिणाम देख कर हैरान हो गया कि जबकि मध्यप्रदेश में लगभग 15 वर्ष से भाजपा अपना कब्जा जमाए बैठी थी फिर भी सत्ता से बाहर हो गई आखिर क्यू हमारा तो यह मानना है कि वह गलती सबसे बडी होती है, जिसमे गलत होने का अहसास न हो बीते 15 वर्ष की हर एक सुबह के बाद आज जब प्रदेश में एक नई सुबह की आरुषि ने गगन में प्रवेश किया तो सब कुछ बदला जा चुका था अब सरकार नई होगी, नए लोग होंगे, नई फिजा होगी, नया दौर होगा और आखिर ऐसा हो भी क्यों ना अंततः परिवर्तन ही तो प्रकृति का शाश्वत नियम है बस अब भाजपाजनो के लिए आत्मचिंतन का ही समय है कि यह सब उलट-पुलट आखिर क्यो हो गया कैसे हो गया तो बस अब इसका स्वआकलन कर लिया जाए यह हार छोटी नहीं, एक बड़ी हार है दरअसल यह सब इसीलिए घटित हो गया कि जब आप अपने मूल आधार और बुनियाद को ताक पर रख देते हैं तो परिणाम ऐसे ही आते हैं अब दौर वह नहीं रहा कि जब लोग आपके द्वारा किए गए अपमान, भूल, दुर्व्यवहार, उपेक्षा को भूल जाएं अब तो वह समय आ गया है कि उस पर मिलने पर उसकी वह दुगनी रूप से भरपाई कर उसकी वसूली भी करता है। बस यह वजह ही रही है कि भाजपा को इस तरह अपनों ने ही सत्ता से बुरी तरह बेदखल कर बाहर का रास्ता दिखा दिया हमारे अनुसार यह जीत कांग्रेस की नहीं बल्कि बीजेपी की खुद की बड़ी हार है और हार का बड़ा कारण पार्टी के उच्च नेतृत्व के भीतर दंभ और अहंकार का होना और फिर उसका प्रदर्शन होना रहा है विपक्ष के साथ ही अपनों की बात को भी निरंकुशता और बर्बरतापूर्ण तरीके से दबा देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सरासर उल्लंघन रहा है... इसके अलावा भाजपा के निचले स्तर का कार्यकर्ता कैडर के द्वारा स्वयं को मोदी और शिवराज तक समझ लेना और फिर उसका आम जनता सहित अधिकारियों में रोब झाड़ना भी बड़ा कारण रहा है। यह कार्यकर्ता स्वयं को मोदी और शिवराज तो समझ बैठे पर सेवा के स्थान पर ’सत्ता का उपभोग करना उनका प्रथम लक्ष्य रह गया था। यह कार्यकर्ता जमीन में भाजपा की वोटों की फसल के लिए बोहनी करना भूलकर हवा में ही कुलांचे खाने लगे थे। भारतीय राजनीति में अब यह मिथक और भ्रम खत्म हो जाना चाहिए कि फलां ही हमारा ही वोटर है। दरअसल बीते कई चुनावों के परिणाम ने यह सिद्ध कर दिया है कि अवसरवादी और निर्लज्ज वोटर अब स्वयं के स्वार्थ सिद्धि पर ही उतारू हो चुका है। वह अब एक दल से मिली सुविधाओं का उपभोग कर दूसरे दल के ज्यादा लाभकारी आश्वासनों मंत्रमुग्ध होकर उसे सत्ता से बेदखल कर देता है। आज तक पूर्ण सत्य है कि मुफ्तखोरी की योजनाओं से अवसरवादी वोट बैंक खड़े किया जा सकते हैं, परंतु समर्पित विचारधारा के समर्थक नहीं जहां अवसरवादी वोट बैंक के द्वारा खेमा बदल लिया गया तो वहीं दूसरी और मध्यम वर्ग के वोटर का गुस्सा लोकलुभावन हितग्राहीमूलक योजनाओं के क्रियान्वयन और उसी गलत व्याख्या पर उतारा गया है। फ्री अनाज, कंप्यूटर, स्कूटी, लैपटॉप, मोबाइल, ड्रेस देकर विकास की नई अवधारणा को गडना भाजपा के लिए खासा महंगा साबित हुआ है। दरअसल समाजशास्त्र की किताब में यह कतई नहीं होना चाहिए कि मुफ्तखोरी की योजनाओं के भारी तौर पर किए गए क्रियान्वयन से सशक्त और समृद्ध देश और समाज का निर्माण हो सकता है। दरअसल यह कटु सत्य है कि ऐसी हितग्राहीमूलक योजनाओं से एक अलाल, असभ्य और परजीवी समाज का ही निर्माण होगा। जिसके लिए भाजपा की यह सत्ता दोषी रही है। यही कारण रहा है कि पेट्रोल, गैस, बिजली, महंगाई और अपना जीवन स्तर सुधारने की ललक को लेकर खासा परेशान रहा बीजेपी का बड़ा समर्थक रहा मध्यमवर्ग ने अब इन चुनावों में भाजपा को आइना दिखा दिया है।इसके अलावा भाजपा का मुख्य वोट बैंक ओबीसी और स्वर्ण समाज रहा है, जिसकी खासी उपेक्षा करना अभी भाजपा की सत्ता से बेदखली का बड़ा असरकारक मुद्दा रहा है।इसके अलावा भाजपा के द्वारा देश के 80 फ़ीसदी राज्यों सहित केंद्र में सत्ता हासिल कर लिए जाने के बावजूद भी अपने मुद्दों से भटकाव कर बरगलाना भी भाजपा के प्रति आम वोटर का गुस्सा जाहिर करने का कारण बन गया। देश व कई प्रदेश में बहुमत के बूते सरकार चला लेने वाली भाजपा ने धारा 370, श्री राम मंदिर निर्माण तथा समान नागरिक संहिता जैसे अहम मुद्दों को अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति के मुद्दों से परे रखकर आम मतदाता को अनवरत मूर्ख बनाया जाना कोपभाजन का बडा कारण को दृष्टिपात किया जा सकता है।भाजपा सरकारों को आइना दिखा देने का बड़ा अवसर दिया था, यह परिणाम उसी का रहा कि आज इन बड़े राज्यों से भाजपा सत्ता से बाहर हो चुकी है। अपने मूल अवधारणा और मुद्दों से भटकाव के रास्ते पर चल पड़ी भाजपा के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि वह कि अब बियाबान के जंगलों में पहुंचकर एक बार फिर आत्मचिंतन और मनन कर फिर से आम जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए नई पहल में जुट जाए।
Thursday, December 13, 2018
आखिर क्यो हारी भाजपा?
कोतमा/आमीन वारसी- प्रदेश सहित चारों राज्य में चुनाव हुए जिसका परिणाम देख कर हैरान हो गया कि जबकि मध्यप्रदेश में लगभग 15 वर्ष से भाजपा अपना कब्जा जमाए बैठी थी फिर भी सत्ता से बाहर हो गई आखिर क्यू हमारा तो यह मानना है कि वह गलती सबसे बडी होती है, जिसमे गलत होने का अहसास न हो बीते 15 वर्ष की हर एक सुबह के बाद आज जब प्रदेश में एक नई सुबह की आरुषि ने गगन में प्रवेश किया तो सब कुछ बदला जा चुका था अब सरकार नई होगी, नए लोग होंगे, नई फिजा होगी, नया दौर होगा और आखिर ऐसा हो भी क्यों ना अंततः परिवर्तन ही तो प्रकृति का शाश्वत नियम है बस अब भाजपाजनो के लिए आत्मचिंतन का ही समय है कि यह सब उलट-पुलट आखिर क्यो हो गया कैसे हो गया तो बस अब इसका स्वआकलन कर लिया जाए यह हार छोटी नहीं, एक बड़ी हार है दरअसल यह सब इसीलिए घटित हो गया कि जब आप अपने मूल आधार और बुनियाद को ताक पर रख देते हैं तो परिणाम ऐसे ही आते हैं अब दौर वह नहीं रहा कि जब लोग आपके द्वारा किए गए अपमान, भूल, दुर्व्यवहार, उपेक्षा को भूल जाएं अब तो वह समय आ गया है कि उस पर मिलने पर उसकी वह दुगनी रूप से भरपाई कर उसकी वसूली भी करता है। बस यह वजह ही रही है कि भाजपा को इस तरह अपनों ने ही सत्ता से बुरी तरह बेदखल कर बाहर का रास्ता दिखा दिया हमारे अनुसार यह जीत कांग्रेस की नहीं बल्कि बीजेपी की खुद की बड़ी हार है और हार का बड़ा कारण पार्टी के उच्च नेतृत्व के भीतर दंभ और अहंकार का होना और फिर उसका प्रदर्शन होना रहा है विपक्ष के साथ ही अपनों की बात को भी निरंकुशता और बर्बरतापूर्ण तरीके से दबा देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सरासर उल्लंघन रहा है... इसके अलावा भाजपा के निचले स्तर का कार्यकर्ता कैडर के द्वारा स्वयं को मोदी और शिवराज तक समझ लेना और फिर उसका आम जनता सहित अधिकारियों में रोब झाड़ना भी बड़ा कारण रहा है। यह कार्यकर्ता स्वयं को मोदी और शिवराज तो समझ बैठे पर सेवा के स्थान पर ’सत्ता का उपभोग करना उनका प्रथम लक्ष्य रह गया था। यह कार्यकर्ता जमीन में भाजपा की वोटों की फसल के लिए बोहनी करना भूलकर हवा में ही कुलांचे खाने लगे थे। भारतीय राजनीति में अब यह मिथक और भ्रम खत्म हो जाना चाहिए कि फलां ही हमारा ही वोटर है। दरअसल बीते कई चुनावों के परिणाम ने यह सिद्ध कर दिया है कि अवसरवादी और निर्लज्ज वोटर अब स्वयं के स्वार्थ सिद्धि पर ही उतारू हो चुका है। वह अब एक दल से मिली सुविधाओं का उपभोग कर दूसरे दल के ज्यादा लाभकारी आश्वासनों मंत्रमुग्ध होकर उसे सत्ता से बेदखल कर देता है। आज तक पूर्ण सत्य है कि मुफ्तखोरी की योजनाओं से अवसरवादी वोट बैंक खड़े किया जा सकते हैं, परंतु समर्पित विचारधारा के समर्थक नहीं जहां अवसरवादी वोट बैंक के द्वारा खेमा बदल लिया गया तो वहीं दूसरी और मध्यम वर्ग के वोटर का गुस्सा लोकलुभावन हितग्राहीमूलक योजनाओं के क्रियान्वयन और उसी गलत व्याख्या पर उतारा गया है। फ्री अनाज, कंप्यूटर, स्कूटी, लैपटॉप, मोबाइल, ड्रेस देकर विकास की नई अवधारणा को गडना भाजपा के लिए खासा महंगा साबित हुआ है। दरअसल समाजशास्त्र की किताब में यह कतई नहीं होना चाहिए कि मुफ्तखोरी की योजनाओं के भारी तौर पर किए गए क्रियान्वयन से सशक्त और समृद्ध देश और समाज का निर्माण हो सकता है। दरअसल यह कटु सत्य है कि ऐसी हितग्राहीमूलक योजनाओं से एक अलाल, असभ्य और परजीवी समाज का ही निर्माण होगा। जिसके लिए भाजपा की यह सत्ता दोषी रही है। यही कारण रहा है कि पेट्रोल, गैस, बिजली, महंगाई और अपना जीवन स्तर सुधारने की ललक को लेकर खासा परेशान रहा बीजेपी का बड़ा समर्थक रहा मध्यमवर्ग ने अब इन चुनावों में भाजपा को आइना दिखा दिया है।इसके अलावा भाजपा का मुख्य वोट बैंक ओबीसी और स्वर्ण समाज रहा है, जिसकी खासी उपेक्षा करना अभी भाजपा की सत्ता से बेदखली का बड़ा असरकारक मुद्दा रहा है।इसके अलावा भाजपा के द्वारा देश के 80 फ़ीसदी राज्यों सहित केंद्र में सत्ता हासिल कर लिए जाने के बावजूद भी अपने मुद्दों से भटकाव कर बरगलाना भी भाजपा के प्रति आम वोटर का गुस्सा जाहिर करने का कारण बन गया। देश व कई प्रदेश में बहुमत के बूते सरकार चला लेने वाली भाजपा ने धारा 370, श्री राम मंदिर निर्माण तथा समान नागरिक संहिता जैसे अहम मुद्दों को अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति के मुद्दों से परे रखकर आम मतदाता को अनवरत मूर्ख बनाया जाना कोपभाजन का बडा कारण को दृष्टिपात किया जा सकता है।भाजपा सरकारों को आइना दिखा देने का बड़ा अवसर दिया था, यह परिणाम उसी का रहा कि आज इन बड़े राज्यों से भाजपा सत्ता से बाहर हो चुकी है। अपने मूल अवधारणा और मुद्दों से भटकाव के रास्ते पर चल पड़ी भाजपा के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि वह कि अब बियाबान के जंगलों में पहुंचकर एक बार फिर आत्मचिंतन और मनन कर फिर से आम जनता का विश्वास अर्जित करने के लिए नई पहल में जुट जाए।
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